Jahnavi Dangeti:-
image from social mediaआंध्र प्रदेश के छोटे से शहर पलकोल्लू में जन्मी जान्हवी डांगेती की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो सपने देखते हैं, लेकिन हालात या संसाधनों की कमी के कारण हिचकिचाते हैं। 11 साल की उम्र में अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना देखने वाली जान्हवी ने न केवल अपने हौसले से आसमान छुआ बल्कि दुनिया भर में भारतीय महिलाओं का नाम रोशन किया।
पलकोल्लू से अंतरिक्ष तक का सफर:-
पलकोल्लू जैसे छोटे शहर में जहां लड़कियों के लिए करियर की राह अक्सर इंजीनियरिंग या मेडिकल तक सीमित रहती है जान्हवी ने कुछ अलग सोचा। उन्होंने चांद को अपना लक्ष्य बनाया। उनके इस सपने को हकीकत में बदलने की शुरुआत तब हुई जब उन्हें पता चला कि अंतरिक्ष यात्रियों को जीरो ग्रैविटी की ट्रेनिंग के लिए स्कूबा डाइविंग की जरूरत होती है।
जान्हवी ने हर दिन 25 किलोमीटर साइकिल चलाकर स्विमिंग पूल तक का सफर शुरू किया। उनकी लगन और मेहनत का नतीजा था कि वह भारत की सबसे कम उम्र की एडवांस स्कूबा डाइवर बनीं। यह उपलब्धि न केवल उनकी हिम्मत का प्रतीक थी बल्कि यह भी दिखाती थी कि अगर इरादे पक्के हों तो कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं।
NASA में सम्मान:-
जान्हवी की प्रतिभा और जुनून ने उन्हें NASA के 10 दिवसीय छात्र कार्यक्रम में जगह दिलाई। इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाली वह पहली भारतीय बनीं। यह उनके लिए एक भावुक पल था। NASA के इस अनुभव ने उन्हें यह यकीन दिलाया कि अंतरिक्ष अब उनके लिए सिर्फ एक सपना नहीं बल्कि एक हकीकत बन सकता है।
इस कार्यक्रम में उन्होंने न केवल तकनीकी ज्ञान हासिल किया बल्कि अंतरिक्ष मिशनों की जटिलताओं को भी समझा। यह अनुभव उनके आत्मविश्वास का आधार बना जिसने उन्हें भविष्य के मिशनों के लिए तैयार किया।
एनालॉग मून मिशन:-
2022 में जान्हवी को पोलैंड में आयोजित एनालॉग मून मिशन के लिए चुना गया। इस मिशन में चांद जैसी कठिन परिस्थितियों में रहने और काम करने की ट्रेनिंग दी गई। यह मिशन उनके लिए एक बड़ा टेस्ट था जिसमें उन्होंने अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता का लोहा मनवाया। चांद की सतह जैसी परिस्थितियों में जीवित रहने, संसाधनों का प्रबंधन करने और वैज्ञानिक प्रयोग करने की चुनौतियों ने जान्हवी को और मजबूत बनाया। इस मिशन ने उन्हें अपने सपनों के और करीब पहुंचाया और साबित किया कि वह अंतरिक्ष के लिए तैयार हैं।
image from social media
जान्हवी का सबसे बड़ा मील का पत्थर अभी बाकी है। वह 2029 में टाइटन्स स्पेस के पहले लोअर्थ ऑर्बिट LEO मिशन का हिस्सा होंगी। इस मिशन में वह न केवल पृथ्वी की दो बार परिक्रमा करेंगी बल्कि 3 घंटे जीरो ग्रैविटी में तैरेंगी। यह मिशन न केवल उनके लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि होगी बल्कि भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में भी एक सुनहरा अध्याय जोड़ेगा। जान्हवी का यह सफर दुनिया भर की महिलाओं को यह संदेश देता है कि कोई भी सपना असंभव नहीं, अगर आप उसका पीछा करने की हिम्मत रखते हैं।
महिला सशक्तिकरण का प्रतीक:-
जान्हवी की कहानी सिर्फ अंतरिक्ष मिशनों तक सीमित नहीं है। यह उन तमाम लड़कियों के लिए एक मिसाल है जो सामाजिक बंधनों, आर्थिक चुनौतियों, या आत्मविश्वास की कमी के कारण अपने सपनों को दबा देती हैं। जान्हवी ने साबित किया कि अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। उनका यह सफर महिला सशक्तिकरण का एक जीता-जागता उदाहरण है। वह न केवल अपने लिए बल्कि उन सभी के लिए एक रास्ता बना रही हैं जो अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं।
जान्हवी डांगेती की कहानी हमें सिखाती है कि सपने वो नहीं जो सोते वक्त देखे जाते हैं बल्कि वो हैं जो आपको सोने न दें। पलकोल्लू के एक छोटे से घर से लेकर NASA और अंतरिक्ष मिशनों तक जान्हवी ने हर कदम पर अपनी मेहनत और हिम्मत से इतिहास रचा।

